वैधनाथ ज्योतिर्लिंग - मंदिर से जुड़े तथ्य , पौराणिक कथा , मान्यताएँ और माहात्म्य।

    

                १२ ज्योतिर्लिंगों  में से एक  वैधनाथ ज्योतिर्लिंग पूर्वीय क्षेत्र में एक सिद्ध पीठ माना जाता हे।  यह मंदिर झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र में देवघर नाम के स्थान पर आया हुआ हे।  वैधनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे में ऐसा कहा जाता हे की , वहा दर्शन और पूजा-अर्चना करने वाले भक्तो की सारी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हे - इसीलिए इस ज्योतिर्लिंग को ''कामना लिंग'' भी कहा जाता हे। शास्त्रों के अनुसार , यहाँ पर वैधनाथ बाबा यानि की भगवान शिव जी का वास होने के कारण इस जगह का नाम देवघर पड़ा था।  वैधनाथ ज्योतिर्लिंग को बाबा बैधनाथ धाम या वैजनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से भी पूजा जाता हे।  


                वैधनाथ ज्योतिर्लिंग के प्रागट्य की कथा त्रेतायुग से जुडी हुयी हे , जिसका निमित्त लंकापति रावण थे।  पूर्वकाल में राक्षसराज रावण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए भगवान शिव की आराधना  की, पर रावण की कई वर्षो की आराधना से भी भगवान शिव प्रसन्न नहीं हुए।  रावण ने शिवजी के दर्शन पाने के हेतु एक बार फिर से घोर तपस्या का आरंभ किया।  इस बार अपनी कठिन तपस्या के चलते रावण ने एक एक करके अपने शिर को आहुति देना शुरू कर दिया।  अपने नौ शिर की आहुति देने के बाद भगवान शिव ने रावण को दर्शन दिए।  

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               भगवान शिव ने रावण की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर रावण को अपने दश मस्तक के साथ पहले जैसा कर दिया।  शिवजी ने रावण को वरदान मांगने को कहा।  रावण ने भगवान शिव से सबसे ज्यादा बलशाली बनने का वरदान माँगा , शिव जी ने उसको यथार्थ वरदान दिया। वरदान प्राप्ति के बाद अत्यंत खुश होकर रावण ने आदरपूर्वक शंकर भगवान से विनती की और उनको अपने साथ लंका चलने को कहा।  शिव जी ने रावण से कहा, '' हे दशानन ! तुम इस शिवलिंग को अपने साथ ले जाओ , उसकी स्थापना करो।  में वही पर वास करूँगा। '' शिवजी के यह वचन सुनकर रावण अति प्रसन्न हुआ , पर उसकी प्रसन्नता को काटते हुए शिवजी ने कहा , '' किन्तु याद रहे लंकापति ! यदि किसी कारणवश तुमने इस शिवलिंग को कही भी जमीन पर रखा तो में वहीँ पर वास करूँगा। '' 

                रावण वहा से प्रसन्न मन से पवित्र शिवलिंग को लेकर लंका की और चलने लगा।  किन्तु भगवान विष्णु और अन्य देवतागण को ये मंजूर नहीं था की रावण इस शिवलिंग को लेकर लंका जाये और भगवान शिव वहा  वास करे।  इसी कारणवश सभी देवताओं के साथ मिलकर हरी ने लीला रचाई।  बीच रास्ते में रावण को मूत्र-विसर्जन (लघुशंका ) करने की इच्छा हुयी , उतना बलशाली होने के  बावजूद वह हरीलीला के वश में आ गया। रावण आसपास देखने लगा की कोई मिल जाये तो उसे थोड़ी देर के लिए शिवलिंग दे , और वो अपनी लघुशंका से मुक्त हो। उतने में वह बैजू नामका एक भील आया, रावण ने उससे इच्छा व्यक्त की और वो मान गया।  बैजू भील को शिवलिंग का भार देकर रावण मूत्र-विसर्जन करने चला गया। हरिलीला के चलते रावण काफी देर तक वह कार्य में व्यस्त रहा , कहते हे वर्तमान समय में वैधनाथ मंदिर के पास जो तालाब हे वो रावण की लघुशंका से निर्मित हे। इस और वह भील शिवलिंग के भार को ज्यादा देर तक सहन नहीं कर सका और उसने शिवलिंग को नीचे जमीन पर रख दिया। 

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                रावण जब वापिस आया तो पाया की वह भील शिवलिंग के पास नहीं था , और शिवलिंग जमीन पर रखा हुआ था। रावण ने क्रोधित मन से आसपास ढूंढा पर भील नजर नहीं आया, मिलता  क्योंकि वही तो भगवान विष्णु थे। उसके बाद रावण ने उस शिवलिंग को उठाने की बहुत कोशिश की पर वो शिवलिंग उतना भारी हो गया था की रावण अपने कार्य में नाकाम रहा। उस समय रावण  को भगवान शिव का वचन याद आया, और इस घटनाक्रम को भगवान शिव की इच्छा समज कर अपने प्रयास बंध कर दिए।  लंका जाने से पूर्व रावण ने अपने अंगूठे से शिवलिंग पर केवल निशान बनाना चाहा, पर रावण के बल के कारन शिवलिंग का कुछ भाग जमीन में अंदर चला गया। इसी कारण से कहते हे इस ज्योतिर्लिंग का वास पाताललोक तक हे।  

                रावण के लंका चले जाने के बाद विष्णु समेत सभी देवताओं ने इस शिवलिंग की स्थापना की और शिवजी ने वहा पर वास किया।  इस ज्योतिर्लिंग के स्थापन का  निमित्त बैजू भील था ,इसी कारण यह शिवलिंग बैजनाथ ज्योतिर्लिंग और आगे जाकर वैधनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्द हुआ। रावण के लंका पहुंचने के बाद सभी देवतागण चिंतित और भयभीत  थे के बलशाली होने का वरदान पाकर वो क्या नहीं करेगा। देवताओं की प्रेरणा से नारद मुनि रावण के पास पहुंचे और कहा ,'' हे दशानन। तुम्हे शिवजी ने बलशाली होने का वरदान तो मिला पर तुम एक बार कैलाश पर्वत उठाकर देखो की वह वरदान कहा तक सफल हुआ। '' नारदजी की बातो में आकर रावण कैलाश पहुंचकर पर्वत उठाने लगा , उसने अपने बल से कैलाश पर्वत को उखाड़ दिया। तभी शंकर भगवान वहा पर वास कर रहे थे, रावण के इस कार्य से क्रोधित होकर उन्होंने रावण को श्राप दिया की, '' हे दुष्ट रावण। अपनी शक्तिओं पर घमंड करने वाले दशानन , तेरा अंत करने वाला शीघ्र इस धरती पर अवतरित होगा।'' इस प्रकार दशानन रावण अपने बलशाली होने के घमंड के कारन शापित हो गया।  

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                वैधनाथ ज्योतिर्लिंग  के आसपास छोटे-बड़े होकर कुल २१ मंदिर हे , इस समस्त मंदिर परिसर को वैधनाथ बाबा का दरबार कहा जाता हे। वैधनाथ ज्योतिर्लिंग के मुख्य मंदिर के सामने ही माँ आदिशक्ति का सिद्ध शक्तिपीठ जयदुर्गा या पार्वती का मंदिर हे। बाबा के दरबार में शिव और पार्वती जी  मंदिर के गठबंधन किया जाया हे और महाशिवरात्रि की पूजा के दौरान इस गठबंधन को बदला जाता हे।  वैधनाथ मंदिर में एक और अनोखी बात हे - सामान्यत: सभी मंदिरो के शिखर पर त्रिशूल लगे होते हे , पर वैधनाथ बाबा के दरबार में शिव मंदिर , पार्वती मंदिर , लक्ष्मीनारायण मंदिर समेत अभी मंदिरो के शिखर पर पंचशूल गए हुए हे।  महाशिवरात्रि के दो दिन पूर्व अर्थात एकादशी के दिन सभी मंदिरो के पंचशूल उतारे  जाते हे और शिव-पार्वती के मंदिर के गठबंधन को भी खोल दिया जाता हे । इन पंचशूल के दर्शन के लिए लाखो श्रद्धालु इस दौरान बाबा के दरबार में आते हे और कुछ भक्त गठबंधन के लाल कपडे को लेने की इच्छा भी रखते हे ।  महाशिवरात्रि के एक दिन पूर्व इन पंचशूल की विशेष पूजा की जाती हे। पूजा के बाद शिवरात्रि के दिन सभी पंचशूल को उनकी जगह विधिवत लगा दिया जाता हे ; शिव मंदिर और पार्वती मंदिर के शिखरों का नए से गठबंधन किया जाता हे। इस त्यौहार में हिस्सा लेने के लिए लाखो श्रद्धालु वैधनाथ बाबा के दरबार में हाजरी देते हे। 

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                वैधनाथ ज्योतिर्लिंग से कुछ दूरी पर वासुकीनाथ का मंदिर हे , इस मंदिर के महिमा के बारे में ऐसा कहा जाता हे की अगर वैधनाथ ज्योतिर्लिंग की यात्रा के दौरान  इस मंदिर में शिवलिंग के दर्शन न किये जाये तो यात्रा का फल नहीं मिलता।  इस शिव मंदिर में शिवलिंग के जलाभिषेक का बहुत महत्व हे , अत: लाखो कावड़ियों  के श्रद्धा का केंद्र हे। कावड़ियों के बीच सावन माह का बड़ा महत्व हे , इसीलिए सावन शुरू होते ही उनकी यात्रा सुल्तानगंज से शुरू होती हे। इस यात्रा के रिवाज के अनुसार , सभी भक्त सुल्तानगंज में मिलते हे वहा अपने अपने पात्र में पवित्र गंगाजल भरकर उसे कावड़ में रखकर यात्रा का आरंभ करते हे। इस यात्रा के दौरान यह ध्यान रखा जाता हे की गंगाजल से भरा पात्र या फिर कावड़ जमीन से न सटे।  लाखों कांवड़ियाँ शिवभक्ति में लीन होकर पैदल यात्रा करके वैधनाथ मंदिर के सावन के मेले में  पहुंचते हे। 

                वैधनाथ बाबा के ज्योतिर्लिग का उल्लेख शिवपुराण के कोटिरुद्रसंहिता में मिलता हे। इसके उपरांत इस ज्योतिर्लिंग का महिमा पद्मपुराण के पातालखंड में भी बताया गया हे।  इस ज्योतिलिंग की स्थापना स्वयं देवताओं ने की थी इसके उपरांत विष्णु भगवान की आज्ञा से देवशिल्पी विश्वकर्मा ने यहाँ मंदिर बनाया था। भगवान राम ने भी यहाँ हनुमान जी के साथ कावड़ यात्रा की थी। शास्त्रों के अनुसार , अगर कोई व्यक्ति देवघर में बिराजमान वैधनाथ ज्योतिर्लिंग जी पूजा-अर्चना करता हे तो उसकी सारी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हे। 

                सोमनाथ ज्योतिर्लिंग- जहाँ चन्द्र ने शिवलिंग की स्थापना की थी।

                शिव का यह ज्योतिर्लिंग दर्शन के लिए सुबह के ४:०० बजे से लेकर ३:३० बजे तक खुला रहता हे , साफ सफाई के बाद मंदिर फिर से ६:०० बजे खोला जाता हे और ९:०० बजे बंध किया जाता हे। वैधनाथ मंदिर में मुख्यत: तीन आरती की जाती हे - सुबह काकड़ आरती, मध्यान आरती और शाम को श्रृंगार के बाद आरती की  जाती हे। देवघर जाने के लिए बडी आसानी से सेवाए मिल जाती हे।  यह स्थान सड़कमार्ग , रेलमार्ग या हवाईमार्ग से पास के सभी शहरो और देश के बड़े शहरो से जुड़ा हुआ हे।  यहाँ पर रहने और घूमने के कई स्थान हे। वैसे तो वैधनाथ बाबा के यात्रा सावन के माह में की जाती हे, पर यहाँ भादो पूर्णिमा और महाशिवरात्रि के वक्त भी भारी भीड़ देखि जाती हे।

                 अगर आप भी वैधनाथ बाबा के कामनालिंग के दर्शन हेतु जा रहे हो तो आपकी यात्रा मंगलमय हो। अगले अंक में फिर  मिलेंगे एक और ज्योतिर्लिंग की कथा के साथ। 

                जय हो बाबा वैधनाथ की। 

               

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