विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग - प्रागट्य , पौराणिक कथा, मंदिर वास्तुकला और माहात्म्य।


                शिव की पावन नगरी काशी में बसा विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग १२ ज्योतिर्लिंग सर्वाधिक महत्व धराता हे। इस मंदिर का महिमा इतना हे की मंदिर के नाम से ही इस बनारस या वाराणसी नगर को ''काशी विश्वनाथ'' कहा जाता हे।  गंगा के पश्चिमी तट पर बने इस मंदिर के बारे में कहा जाता हे  अगर कोई व्यक्ति गंगा में स्नान कर, इस ज्योतिर्लिंग के  तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती हे।  शास्त्रों में ऐसा भी कहा जाता हे की जितना पुण्य बाकि के ज्योतिर्लिंगों के पुजन-अर्चन से मिलता हे उतना ही पुण्य इस मोक्षदायिनी मंदिर में दर्शनमात्र से  मिलता हे।  विश्वनाथ मंदिर का महिमा इतना हे की यहाँ पर भगवान की तरह पूजे जाने  महापुरुष भी दर्शन के लिए आ चुके हे जैसे की - महाराष्ट्र के महान संत श्री एकनाथजी , रामकृष्ण परमहंस , स्वामी विवेकानंद , गोस्वामी तुलसीदासजी , महाऋषि दयानंदजी , आदिगुरु शंकराचार्य और ऐसे तो अनेक।  वर्तमान समय में भी भारत को नयी दिशा देने वाले प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी  मंदिर  बाद ही किसी शुभ कार्य का आरंभ  करते हे।  


                दुनिया का प्राचीनतम शहर, देश का धार्मिक केंद्र और शिवप्रिय मोक्षदायिनी काशी नगरी के बारे में पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे :  मोक्षदायिनी काशी नगरी-जिसे स्वयं भगवान शिव ने बसाया था ! 

                 काशी नगर का हिंदू धर्म में अग्रिम महत्व हे क्योकि इस नगर को भगवान शिवशंभु ने स्वयं बसाया था।  इस मंदिर से जुडी पौराणिक कथा  अनुसार , यहाँ पर स्थित ज्योतिर्लिंग किसी मनुष्य या पशुपक्षी के निमित्त से नहीं बना , भगवान शिव खुद इस ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रगट हुए थे।  कथा के अनुसार, शिव और पार्वती के विवाह के बाद भगवान शिव कैलास पर्वत पर रहने लगे , इस बाद से देवी पार्वती नाराज रहने लगी।  देवी पार्वती ने अपने मन की बात शिव  को बताई , भगवान शिव ने भी अपनी अर्धांगिनी की बात सुन कर काशी में आकर रहने लगे।  ऐसे काशी में आने के बाद शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हुए ,  बाद में विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग ही शिव का निवासस्थान बन गया।  

                जानिए भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग - स्थान , इतिहास और माहात्म्य के बारे में।

                इतिहास के पन्नो में विश्वनाथ मंदिर सर्वप्रथम किसने बनाया उसका उल्लेख नहीं मिलता पर, मंदिर का इतिहास ३५०० साल पुराना  बताया जाता हे।  इस मंदिर का जिर्णोद्दार राजा हरिश्चंद्र ने ११वी शताब्दी में करवाया था।  तब से लेकर १७वी शताब्दी तक  मंदिर को हमलावरों ने ध्वंस  किया और इसका पुन:निर्माण हुआ।  ईस १७८० में इंदौर की  रानी अहिल्याबाई होल्कर ने इस मंदिर के वास्तविक रूप का निर्माण करवाया था। इस के बाद पंजाब के राजा रणजीतसिंह ने ईस १८५३ में मंदिर के शिखर को १००० किलो सोने से सुवर्णमंडित करवाया था , तब से इस मंदिर को सुवर्णमंदिर के नाम से भी जाना जाता हे। वर्तमान समय में मंदिर प्रशासन मंदिर के बाकि भाग को भी सुवर्णसज्जित करने का प्रयास कर रहा हे।   मंदिर की दिवाल से सटकर ज्ञानरूपी मस्जिद हे , इस जमीन का विवाद भी अयोध्या के रामजन्मभूमी की तरह बरसो से चला आ रहा हे।  

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                विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग दो हिस्सों में बटा हे - एक  भाग में भगवान का काले पथ्थर से बना ज्योतिर्लिंग और मंदिर के दाहिने भाग में माँ भगवती बिराजमान हे।  माँ भगवती के साक्षात यहाँ होने से काशी में मुक्ति के द्वार खुल जाते हे। शास्त्रों में कहा गया हे की यहाँ पर देहत्याग करने वाले मनुष्य को भगवान शिव स्वयं तारक मंत्र देकर मोक्ष की प्राप्ति करवाते हे।  तांत्रिक विधा के अनुसार विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग में तंत्र के चार प्रमुख द्वार हे - शांति द्वार , कला द्वार , प्रतिष्ठा द्वार और निवृत्ती द्वार।  मंदिर के मुख्य दक्षिण द्वार से मंदिर में प्रवेश करते ही विश्वनाथ के अघोर रूप के दर्शन होते हे , जिसके दर्शनमात्र से सब के पाप धूल जाते हे।  काशी में बिराजमान शिवशक्ति के बारे में ऐसा कहा जाते हे की - माँ भगवती देवी अन्नपूर्णा के रूप में काशी के प्रत्येक जीव का पोषण करती हे और मृत्युपर्यन्त शिव उन्हें तारक मंत्र देकर उगारते हे , इसीलिए शिव को  तारकेश्वर या ताड़केश्वर भी कहते हे।   

                विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग  सुबह के २:३० बजे खुल  जाता हे , पर मंगला आरती के बाद यह मंदिर दर्शनार्थीओ के लिए ४:०० बजे से खुलता हे।  इसके बाद ११ बजे से लेकर १२ बजे तक मध्याह्न आरती की जाती हे।  मंदिर में दर्शन के वक्त अनुसार भक्त यहाँ पर शिवलिंग का अभिषेक और पूजन भी कर सकते हे।  शाम को ७ बजे  सप्तऋषि आरती की जाती हे , ९ बजे श्रृंगार और भोग लगाया जाता हे और भोग आरती होती हे।  यह आरती के बाद मंदिर में  दर्शनार्थीओ का आना  वर्जित हे। रात को ११ बजे शयन आरती के बाद मंदिर के द्वार बंध  किये जाते हे।  पुराणों के अनुसार  काशी में शिव गुरु और राजा के रूप में रहते हे - पूरे दिन शिव गुरु के रूप में काशी में भ्रमण करते हे , और रात को श्रृंगार के बाद राजा के रूप  में होते हे ; इसीलिए शिव को राजराजेश्वर कहते हे।

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                विश्वनाथ बाबा के दरबार में वैसे तो पूरे साल श्रद्धालुओं को भीड़ लगी  रहती हे , पर  महाशिवरात्रि और सावन के महीने में यह संख्या बहुत बढ़ जाती हे।  शिव के पावन धाम काशी का हर त्यौहार निराला हे , किन्तु महाशिवरात्रि की बात ही निराली हे।  इस दिन मध्यरात्रि में काशी हर छोटे बड़े शिवमंदिर से बाबा की पालखीयात्रा विश्वनाथ के दरबार में अपनी हाजरी लगाने के लिए  पहुँचती हे।  फाल्गुन सूद एकादशी को विश्वनाथ मंदिर में विशेष श्रृंगारोत्सव का आयोजन जाता हे, जिसे देखने के लिए देशी-विदेशी लाखो शिवभक्त वाराणसी-काशी आते हे।  

                काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी शहर के मध्य में स्थित हे , इस शहर में देवी का शक्तिपीठ विशालाक्षी मंदिर , काशी के कोतवाल कालभैरव बाबा , गणेशजी और कार्तिकेयजी के भी मंदिर हे।  इसीलिए कहते हे यह शहर शिव का बसाया हे और यहाँ भगवान शिव अपने परिवार के साथ विराजमान हे।  वाराणसी उत्तरप्रदेश का एक प्रमुख शहर होने के साथ साथ देश का प्राचीनतम और धार्मिक नगर भी हे , इसीलिए वो देश के बड़े शहरो से सम्पूर्णत: सड़कमार्ग , रेलमार्ग और हवाईमार्ग से जुड़ा हुआ हे।  यहाँ पर जाने , रहने और घूमने के लिए बहुत सारी सुविधाएँ आसानी से मिल सकती हे।  

                अगले अंक में फिर मिलेंगे एक और ज्योतिर्लिंग की कथा के साथ।  

                पार्वती पतै  हर हर महादेव।  

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