सोमनाथ ज्योतिर्लिंग - सोमनाथ मंदिर , वास्तुकला , पौराणिक कथा , ऐतिहासिक महत्व और जानिए सोमनाथ यात्रा के बारे में सारी जानकारी


            १२ ज्योतिर्लिंगों में से सबसे पहला ज्योतिर्लिंग  यानी की सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, गुजरात के सौराष्ट्र में प्रभासपाटण नामक स्थल पर अरब सागर के किनारे स्थित हे।  सोमनाथ मंदिर भारतवर्ष के प्राचीनतम और ऐतिहासिक मंदिरो में से एक हे , जहा दुनियाभर से शिवभक्त भगवान शिव के दर्शन के लिए आते हे।   इस ज्योतिर्लिंग के बारे में कहा गया हे की यहाँ के शिवलिंग की स्थापना स्वयं चंद्र भगवान ने की थी और इसका उल्लेख प्राचीनतम वेद ऋग्वेद में भी मिलता हे।  इस ज्योतिर्लिंग का महिमा महाभारत , श्रीमद भागवत और स्कन्द पुराण में भी बताया गया हे।  

            सोमनाथ मंदिर हिन्दू धर्म के बहुत सारे उतर चढाव का साक्षी रहा हे।  इस मंदिर को कई बार मुस्लिम शासकोने लूटा  , और हर बार इस मंदिर का पुनःनिर्माण किया गया।  कहा जाता हे इस मंदिर में शिवलिंग हवा में स्थिर था , जो की वास्तुकला का बेजोड़ नमूना था।  इतिहासकारो की माने तो शिवलिंग से जुडी चुंबकीय शक्ति से वो हवा में स्थिर था। महमूद गजनी भी इस नज़ारे को देख कर चौंक गया था , जब वो इस मंदिर के खजाने को लूटने आया था।  

            भारत की आजादी के बाद तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने ६ बार टूटने के बार सातवीं बार इस मंदिर का पुनःनिर्माण शुरू करवाया और कैलास महामेरु प्रासाद शैली में इस मंदिर का निर्माण पूर्ण किया गया।  १९९५ ने भारत के राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा ने पूर्ण रूप से सोमनाथ मंदिर देश को समर्पित किया।  इस मंदिर के तीन मुख्य भाग हे - गर्भगृह , सभामंडप और नृत्यमंडप।  सोमनाथ मंदिर के शिखर की  ऊंचाई १५० फ़ीट हे , शिखर पर लगभग १० टन वजन का कलश हे और २७ फ़ीट की ऊंचाई पर मंदिर की धजा लहराती हे।  

            इस मंदिर से जुडी पौराणिक कथा के अनुसार , यहाँ के शिवलिंग की स्थापना भगवान चंद्र ने की थी। शास्त्रों के अनुसार दक्ष प्रजापति की २७ कन्याओ का विवाह भगवान चंद्र के साथ हुआ था , पर चंद्र केवल रोहिणी से सबसे ज्यादा स्नेह करते थे। इस से दुखी होकर बाकि की २६ कन्याओ ने अपने पिता दक्ष प्रजापति से बात की , तब दक्ष प्रजापति ने अपने जमाता चंद्र को समजाने का हर संभव प्रयास किया। पर इन सबका चंद्र पर कोई असर नहीं हुआ। अंत में क्रोधित होकर दक्ष प्रजापति ने चंद्र को क्षयग्रसित होने का श्राप दिया , और तत्काल भगवान चंद्र क्षय से पीड़ित हो गये।  भगवान चंद्र की शीतलता कम हो गयी , उनकी क्षीण हुयी किरणों का असर पृथ्वी पर पड़ने लगा।  तब पृथ्वी को इस श्राप से बचाने के लिए सभी देवतागण भगवान चंद्र के साथ सृष्टि के सर्जनहार ब्रम्हाजी के पास पहुंचे। 

            ब्रम्हाजी ने भगवान चंद्र को शिव की आराधना करने को कहा , तब भगवान चंद्र ने प्रभासपाटण में आकर शिव के ध्यान में महामृत्युंजय मंत्र के १० करोड़ जाप किये।  चंद्र की आराधना से भगवान शिव प्रसन्न हुए।  भगवान शिव ने कहा, '' हे चंद्र ! तुम इस रोग से अवश्य मुक्त होंगे , पर दक्ष प्रजापति का श्राप भी विकल नहीं हो सकता।  इसी कारन तुम महीने में एक बार अपने पूर्णस्वरुप को प्राप्त होंगे और एक बार तुम्हारा संपूर्ण स्वरुप क्षीण हो जायेगा।'' कहा जाता से यही से चंद्रकला , शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष की शुरुआत हुयी थी। भगवान चंद्र के आग्रह को वश होकर शिव ने चंद्र के द्वारा स्थापित शिवलिंग में वास किया और वही आगे जाकर ''सोमनाथ'' या ''सोमेश्वर''  कहलाया।  

             स्कंदपुराण के प्रभासखण्ड में इस ज्योतिर्लिंग का महिमा दर्शाया गया हे।  इसके अनुसार सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का नाम हर नयी सृष्टि के साथ बदल जाता हे।  स्कंदपुराण के अनुसार जब वर्तमान सृष्टि का प्रलय के कारण विनाश होगा और सृष्टि के सर्जनहार ब्रम्हा नयी सृष्टि का सर्जन करेंगे तब इस ज्योतिर्लिंग का नाम ''प्राणनाथ'' होगा।  

             सर्वप्रथम भगवान चंद्र ने सोने से इस मंदिर का निर्माण करवाया था , उसके पतन के बाद रवि ने चांदी से इस मंदिर का निर्माण करवाया।  भगवान कृष्ण ने इस मंदिर का निर्माण चंदन की लकड़ीओ से करवाया था।  महमूद गजनी की लूट के बाद राजा भीमदेव ने सिद्धराज जयसिंह की सहायता से इस मंदिर का पुनःनिर्माण करवाया था। आज का  मौजूदा मंदिर सातवीं बार सरदार पटेल के प्रयास से निर्मित हुआ हे।  

             सोमनाथ मंदिर के दक्षिण में एक स्तंभ हे , उसको बाणस्तंभ कहते हे।  इस स्तंभ पर एक तीर की आकृति हे , कहा जाता हे वहा से लेकर दक्षिण ध्रुव तक बीच में कोई भी भूमिभाग नहीं हे।  मंदिर के पीछे माँ पार्वती  का प्राचीन मंदिर हे।  इस मंदिर के दिग्विजय द्धार को जामनगर की राजमाता ने अपने पति की स्मृति में बनवाया था।  मंदिर निर्माण में सरदार पटेल के योगदान को ध्यान में रखकर , सरदार पटेल की प्रतिमा भी बनवायी गयी हे।  इस जगह का हिन्दुओमे बहुत महत्व हे , सोमनाथ में पितृगण का श्राद्ध भी किया जाता है।  इस श्राद्ध के लिए कार्तिक , चैत्र और भाद्रपद महीने में श्रद्धालु अपने पितृओ का श्राद्ध करने आते हे।  यहाँ पर सागरकिनारे तीन नदियाँ  - हिरण , कपिला और सरस्वती का त्रिवेणी संगम भी हे।  यहाँ पर स्नान करने को बहुत पवित्र माना जाता हे।  

            सोमनाथ ज्योतिर्लिंग सुबह छह बजे से लेकर रात को नौ बजे तक दर्शनार्थीओ के लिए खुला रहता हे , लेकिन यह समय त्यौहार और ऋतु के मुताबिक बदलता रहता हे।  मंदिर में तीन बार आरती होती हे - सुबह की आरती , दोपहर की आरती और संध्याआरती, आरती में हिस्सा लेने के लिए दूर दूर से लोग आते हे।  मंदिर परिसर में शाम के वक्त लाइट एंड साउंड शो किया जाता हे , उसमे मंदिर के इतिहास को दिखाया जाता हे।  

            सोमनाथ जाने के लिए सबसे आसान मार्ग रेलवे हे ,यहाँ से  सबसे नजदीक वेरावल रेलवे स्टेशन हे। वेरावल से अहमदाबाद और राजकोट के लिए सीधी ट्रैन भी उपलब्ध हे।  वेरावल से मंदिर ५ किमी दूर हे , जहाँ से कोई भी ऑटो या टैक्सी मिल सकती हे मंदिर तक जाने के लिए। सड़कमार्ग से जाने के लिए भी अहमदाबाद , राजकोट और पोरबंदर जैसे  बड़े शहरो से आसानी से बससेवा उपलब्ध हे।  अगर आप सोमनाथ में रुकना चाहते हे तो पास में बहुत सारी धर्मशालाए , गेस्ट हाउस , होटल्स और अतिथिगृह उपलब्ध हे।  

            आशा है की यह जानकारी आपको पसंद आयी होगी। सावन के इस महीने में हम ऐसे ही और ज्योतिर्लिंगों की बारे में जानेंगे , तो अगली पोस्ट की जानकारी के लिए सब्सक्राइब कीजिये इस चेंनल को ताकि उसका नोटिफिकेशन आपको मिल जाये।  जय सोमनाथ।  

               अगले अंक में जानिए मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के बारे में।  












































































































































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