त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग - मंदिर से जुड़े तथ्य , पौराणिक कथा, माहात्म्य और त्यौहार।


                त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर महाराष्ट्र के प्रमुख मंदिरो में से एक हे , साथ ही इस मंदिर की गिनती भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में भी होती हे।  नाम को सार्थक करते हुए यहाँ पर त्र्यंबक (तीन नेत्र वाले ) ईश्वर - ब्रम्हा , विष्णु और शिव के दर्शन होते हे, ये भारत का एकमात्र ऐसा शिव मंदिर हे जहा त्रिदेव साथ में बिराजमान हे।  यह ज्योतिर्लिंग नासिक से ३५ किलोमीटर की दूरी पर गोदावरी नदी के किनारे पर बना हुआ हे।  मंदिर के पास में ही ब्रम्हगिरी पर्वत हे जो की गोदावरी नदी का उद्गम स्थान भी हे।  इस ज्योतिर्लिंग के प्रागट्य का इतिहास महर्षि गौतम और गोदावरी नदी के साथ जुड़ा हुआ हे।  


                पौराणिक कथा के अनुसार , महर्षि गौतम अपनी पत्नी और कुछ अन्य ब्राम्हण परिवार के साथ तपोवन में रहते थे।  एक दिन किसी बार पर ऋषिपत्नी अहिल्या से अन्य ब्राम्हण पत्नियाँ नाराज हो गयी , और उन्होंने अपने पतियों को ऋषि गौतम का अपमान करने को कहा।  इसके बाद सभी ब्राम्हणो ने प्रथमपूज्य गणेशजी की आराधना करने लगे।  ब्राम्हणो की पूजा - अर्चना से गणेशजी प्रसन्न हुए और उनसे वरदान मांगने कहा।  सभी ब्राम्हणो ने एक स्वर में कहा ,'' हे प्रथम पूजनीय गणेशजी। यदि आप हमें कोई फल देना चाहते हो तो ऋषि गौतम को किसी प्रकार से आश्रम से बहार निकाल दीजिये। '' गणेशजी ने ऐसा वरदान न मांगने को कहा पर , सभी ब्राम्हण अपनी बात पर अटल रहे ; अत: गणेशजी ने विवश होकर अपने भक्तो की बात स्वीकार कर ली। 

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                अपने वरदान को सार्थक करने के लिए  गणेशजी एक दुबली गाय का रूप लेकर गौतम ऋषि के खेत में चरण करने लगे।  अन्य गाय को अपने  चरते देख गौतम ऋषि थोड़ा घास लेकर उसको बहार निकालने लगे , पर घास का स्पर्श होते ही गाय निचे गिर कर मर गयी।  तभी वह छीपे अन्य ब्राम्हण वह आ गए और उन्हें गौ-हत्यारा कहकर अपमानित करने लगे।  इस पूरे घटनाक्रम से ऋषि गौतम अत्यंत आश्चर्यचकित और दुखी थे।  सभी ब्राम्हणो ने उनसे कहा ,'' आपको यह आश्रम छोड़कर चले जाना चाहिए , गौ-हत्यारे के निकर होने से हमें भी पाप लगेगा। '' इस घटना के बाद गौतम ऋषि आश्रम से दूर अन्य स्थल पर अपनी पत्नी अहिल्या के साथ रहने लगे।  पर यहाँ भी उन कथित ब्राम्हणो ने उनका जीवन दुश्वार कर दिया , कहने लगे '' गौ-हत्या के कारण आपको कोई भी पूजा पाठ या कर्मकांड इत्यादि करने का कोई हक़ नहीं हे। '' 

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                गौहत्या और अपने ब्राम्हण होने के हक़ खोकर हारे हुए मन से गौतम ऋषि ने कहा , '' हे ब्राम्हणो , अब आप ही मुझे इस गौहत्या से मुक्ति का मार्ग दिखाओ। '' तब ब्राम्हणो ने द्वेष युक्त सबसे कठिन मार्ग बताते हुए कहा ,'' गौतम।  तुम सब को अपने गौहत्या के पाप को बताते हुए ३ बार इस पृथ्वी की प्रदक्षिणा करो।  इसके बाद १ महीने के व्रत और ब्रम्हगिरी पर्वत की १०१ परिक्रमा के बाद ही तुम्हारी शुद्धि होगी। अथवा गंगाजी में स्नान करके एक करोड़ पार्थिव शिवलिंग की पूजा करो और बाद में फिर से गंगास्नान कर के ११ बार ब्रम्हगिरी पर्वत की परिक्रमा करो। सौ घडो के पवित्र जल से इन पार्थिव शिवलिंगो का स्नान कराओ तभी तुम्हारा उद्धार होगा। '' 

                गौतम ऋषि ने अत्यंत कठिन सभी कार्य को एक के बाद एक पूर्ण किया।  गौतम ऋषि की अत्यंत कठिन तपस्या से शिव भगवान प्रसन्न हुए और उनको वरदान मांगने को कहा। गौतम ऋषि ने अत्यंत भक्तिभाव के सूर में कहा,'' हे त्रिलोकनाथ भगवान शिव, मुझे इस गौहत्या के पाप से मुक्त कर दो। '' तभी शिव ने गौतम ऋषि से कहा , '' हे ऋषिश्रेष्ठ, आप सर्वदा निष्पाप हो।  गौहत्या का पाप आप पर छल पूर्वक लगाया गया था , छलपूर्ण कार्य करने वाले इन ब्राम्हणो को में दंडित करना चाहता हु। '' शिवजी के क्रोध को शांत करते हुए गौतमऋषि ने कहा ,'' हे प्रभु, कृपया उन्हें क्षमा करे।  उनके निमित्त से हे मुज ब्राम्हण को आपके दर्शन हुए। मेरी आप से प्राथना हे की लोककल्याण हेतु आप इसी स्थल पर बिराजमान हो। '' तभी वहा आ पहुंचे ऋषिओं और देवतागण ने भी गौतम ऋषि की बात का समर्थन करते हुए शिव को प्रार्थना करने लगे।  सभी के आग्रह को वश होकर शिव जी ने यही पर ज्योतिर्लिंग के रूप में वास किया।  जिस पवित्र जल से गौतम ऋषि ने शिवलिंग का अभिषेक  किया था , वो जल गोदावरी नदी के रूप में प्रवाहित होने लगा और आगे चल कर इस नदी को दक्षिण की गंगा के रूप में पूजा जाने लगा।  

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                त्र्यंबकेश्वर मंदर नासिक जिले में त्र्यम्बक नाम के गाँव में आया हुआ हे , गांव के प्रवेशद्वार से ही मंदिर का  काळा पथ्थर से बना शिखर दिखाई पड़ता हे। यह मंदिर सिंधु-आर्य शैली का उत्कृष्ट नमूना हे , जो की काळा पथ्थरो से निर्मित हे।  इस मंदिर के गर्भगृह में दाखिल होते ही  शिवलिंग की आभा दिखाई पड़ती हे , किन्तु शिवलिंग के स्थान पर एक गड्डा हे।  इस गड्डे में औसत एक इंच की ऊंचाई के तीन शिवलिंग हे जिन्हे त्रिदेव-ब्रम्हा,विष्णु और महेश का प्रतीक कहा जाता हे।  शास्त्रों में उल्लेख के अनुसार यहाँ पर पहले ४ शिवलिंग थे और चौथा शिवलिंग देवराज इंद्र का था।  

                गोदावरी नदी के तट पर बना वर्तमान मंदिर मराठा शासक नाना साहेब पेशवा ने ईस्वी १७५५ से १७८६ के बीच करवाया था, जिसमे तत्कालीन करीब १७ लाख रुपये खर्च हुए थे।  इस मंदिर में शास्त्रों के जानकर पंडितो द्वारा कालसर्प विधि , त्रिपिण्डी विधि , नारायण नागबलि जैसी कई विधियाँ की जाती हे , जो की भारत के कुछ चुनिंदा जगहों पर ही की।  इसी लिए इस मंदिर में पूरे सालभर में लाखो भक्तगण दर्शन और ये पूजा-विधि के लिए आते हे।  त्र्यंबकेश्वर भगवान को इस गांव का राजा कहा जाता हे , इसी के चलते रोज सोमवार को भगवान की पालखी यात्रा निकली जाती हे ताकी राजा अपने नगर का हालचाल जान सके।  इस नगरचर्या के दौरान शिव भगवान  के पंचमुखी रूप को पालखी में बिठाकर कुशावर्त तीर्थ स्थान पर घाट-स्नान कराया जाता हे।  नगरयात्रा से लौटकर त्र्यंबकेश्वर को हीरेजड़ित मुकुट पहनाया जाता है। 

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                महाराष्ट्र का त्र्यंबकेश्वर मंदिर दर्शनार्थीओ के लिए सुबह के ५:३० बजे से लेकर रात के ९:०० बजे तक खुला रहता हे।  मंदिर में तीन आरती की जाती हे - मंगला आरती , मध्याह्न आरती और संध्या आरती।  हर सोमवार को त्र्यंबक महाराज को हीरेजड़ित मुगट पहनाया जाता हे , इस मुकुट को पांडवकाल का बताया जाता हे।  मंदिर तक जाने के लिए सर्वप्रथम नासिक तक जाना पड़ता हे - और इसके लिए सड़कमार्ग, रेलमार्ग या हवाईमार्ग से आसानी से पहुँचा जा सकता हे।  मंदिर के आसपास रहने और घूमने के लिए बहुत विकल्प हे।  

                आशा करते हे यह अंक आपको पसंद आया होगा , अगर आप किसी विषय पर जानकारी पाना चाहते हो कमेंट करके बताये। अगला अंक आप के सुजाये गए विषय पर  होगा।  

                जय भोलेनाथ।  

                

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