भारत का सबसे पुराना शहर - वाराणसी , काशी या बनारस। जानिये बनारस के इतिहास, मंदिर, घाट , खानपान और पावनकारी गंगा के बारे में।
वाराणसी कहो , काशी कहो या फिर कहो बनारस .. ..नाम सुनते ही सामने आ जाता हे पवित्र और मंगलकारी गंगा का मनोरम दृश्य। उत्तरप्रदेश के बनारस को हिन्दुओ के सबसे पवित्र सात नगर - सप्तपुरी में अग्रिम स्थान दिया गया हे। बनारसी साडी हो या हो बनारस का पान , काशी के पंडित हो या पावनकारी गंगा - सब की बात ही निराली हे। वैसे तो यह शहर आध्यात्मिक रूचि रखने वाले लोगो में पहले से प्रसिद्द हे पर २०१४ के बाद ये राजकीय दृषिकोण से भी महत्वपूर्ण हो गया जब भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पद के दावेदार श्री नरेंद्र मोदी जी ने वहा से चुनाव लड़ने की घोषणा की थी।
पौराणिक कथाओ के अनुसार, इस शहर को भगवान शिव ने बसाया था , इसी लिए इस शहर को शिव की नगरी भी कहा जाता हे। इतिहासकारो की माने तो काशी नगरी को ५००० साल से भी पुराना बताया जाता हे। ऐसा कहा जाता हे की इस नगर का नाम वहां के राजा काश के नाम पर से काशी पड़ा था।वरुणा और असि नदियों के बिच में बसने के कारण इस शहर का नाम वाराणसी पड़ा। हिंदु धर्म के प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद , अथर्ववेद ,शिवपुराण और महाभारत में भी इस नगर का उल्लेख मिलता हे। राम के परमभक्त तुलसीदास को भी यही पर ज्ञान का साक्षात्कार हुआ था और वाल्मीकि रामायण में भी काशी का उल्लेख मिलता हे। जैन धर्म के तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ(७वे) , चन्द्रप्रभु(८वे), श्रेयांशनाथ(११वे) और पार्श्वनाथ(२३वे) का जन्म भी इसी भूमि पर हुआ था। हिन्दू और जैन धर्म के अलावा वाराणसी बौद्ध, इस्लाम , शीख और ईसाई धर्म के लिए भी महत्वपूर्ण स्थल हे। इसीीलिए काशी को धार्मिक नगरी भी कहा गया है|
शास्त्रों के मुताबिक , अगर वाराणसी में कोई धार्मिक कार्य जैसे की दान-पुण्य , मंत्रजप किया जाये तो विशेष फलकारी होता हे। किसी मृतक के अस्थियो का विसर्जन अगर यहाँ गंगा नदी में किया जाये तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती हे। ऐसा कहा जाता हे की अगर कोई काशी आकर गंगा में डुबकी लगा लेता हे तो उसके सारे पाप धूल जाते हे।
वाराणसी शहर मुख्यतया मंदिर और घाटों के लिए प्रसिद्ध हे। इस नगर के बारे में कहा जाता हे की यहाँ पर घरो से ज्यादा मंदिर हे, यहाँ पर कुछ मंदिर ऐसे भी हे जहा अविरत भगवान की पूजा की जाती हे। ज्यादातर यहाँ पर शैव और वैष्णव धर्म के मंदिर हे, काशी के हर एक चौराहे बसा मंदिर अपने समय के इतिहास को प्रदर्शित करता हे। मंदिरो के साथ साथ यहाँ के पंडित भी विद्धान माने जाते हे , कहा जाता हे भारतभर से पंडित शास्त्रों का ज्ञान लेने के लिए काशी में आते हे। १२ ज्योतिर्लिंगों में से एक काशीविश्वनाथ मंदिर, देवी का विशालाक्षी शक्तिपीठ और काशी के कोतवाल कहे जानेवाले कालबभैरव का मंदिर यहाँ के सुप्रसिद्ध मंदिर हे। यहाँ के अन्नपूर्णा मंदिर , तुलसीमानस मंदिर, ढुंढिराज गणेश का मंदिर, संकटमोचन हनुमान का मंदिर भी श्रद्धालुओं का आकर्षण का केंद्र हे।
बनारस में गंगा के तट पर अनेक सुन्दर घाट बने हुए हे , ये सभी घाट धार्मिक या पौराणिक घाट से जुड़े हुए हे। यहाँ के सभी घाट पूर्व की और हे , इसकी वजह से सूर्योदय के साथ ही ये घाट पर सूर्य की पहली किरण दस्तक देती हे। एक और रोचक बात यह हे की यहाँ के सरे घाट मिलकर धनुष आकर का निर्माण करते हे। यहाँ का प्रसिद्ध मणिकर्णिका घाट , जहा चिता की अग्नि कभी शांत नहीं होती क्यों की ऐसा कहा जाता हे यहाँ पर अग्निसंस्कार करने से मृतक को मोक्ष की प्राप्ति होती हे। कुछ और प्रसिद्ध घाटों में दशाश्वमेघ घाट , असी घाट ,पंचगंगा घाट और आदिकेशव घाट का नाम लिया जाता हे। यहाँ के घाट पर सूर्योदय और सूर्यास्त के वक्त पूजा आरती की जाती हे , जिसमे सेंकडो श्रद्धालु भाग लेते हे।
बनारस की रेशम की साडी और बनारस का पान तो जगप्रसिद्ध हे ही पर यहाँ की गलियां भी बहुत रसप्रद हे। बनारस की गलियों के बारे में कहा जाता हे की बनारस में सड़को से सौ गुनी गलियां हे। बनारस में गलियों का नाम भी कुछ ऐसा ही निराला हे। कुछ गलियों के बारे में बात करे तो कचौरी की गली क्योंकि यहाँ पर कचौरिऔ दुकाने हे , खोवा गली - जहा पर खोवा की मंडी लगती हे , हनुमान गली क्योंकि ये गली हनुमान घाट तक ले जाती हे , ऐसे ही विश्वनाथ गली, कालभैरव गली, गोपाल मंदिर की गली और अनगिनत . . ... ! इन गलियों में महाशिवरात्रि और होली के त्यौहार का रंग देखते ही बनता हे।
कानपुर से शुरू होने वाली भोजपुरी भाषा की मिठास, बनारस पहुंचते पहुंचते चासनी बन जाती हे।
क्योकि बनारस का मीठा यहाँ के लोगो की जुबान पर हे। यहाँ की केसरिया जलेबी, काजू बर्फी और मलाई लस्सी बहुत लोकप्रिय हे। मीठे के साथ साथ यहाँ की कचोरिया, चाट और बनारसी पान कई लोगो को अपनी और लुभाते हे।
बनारस की बात हो और संगीत की बात न आये वो तो नामुमकिन हे। इस शहर ने संगीत के क्षेत्र में अपनी अलग पेहचान बनायीं हे, इसने अपना संगीत खुद बनाया हे - यानि की बनारस घराना जो भारत के समृद्ध शास्त्रीय संगीत का बेमिसाल नमूना हे। भारत के चारो प्रतिष्ठित अवार्ड्स भारत रत्न , पद्मविभूषण ,पद्मभूषण और पद्मश्री को जितने वाले उस्ताद बिस्मिल्लाह खान बनारस के थे, जिन्होंने शरणाइवादन में बहुत सिद्धियाँ हासिल की थी । उनके अलावा कथक के जानेमाने कलाकार सीतरादेवी, तबलावादक पंडित अनोखेलाल , कण्ठे महाराज और किशन महाराज भी संगीत के दुनिया के नामचीन धुरंधरों में से एक हे।
बनारस के बारे में तो जितना लिखा जाये उतना कम हे- बनारस के मंदिर ,घाट , गलियों , खानपान और संगीत , इस शहर की हर एक बात निराली हे। अगर बनारस को अच्छी तरह से जानना हे तो वह के मंदिरो में जाये, वह के घाट पर घूमे , और बनारस की गलियों में जाकर खाना खाये। आप भी बनारस गए हे या फिर उसके बारे में ज्यादा जानकारी चाहते हे तो हमें कमेंट करके जरूर बताये।
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