ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग - स्वयंभू शिवलिंग का प्रागट्य , पौराणिक कथाएं , मंदिर की वास्तुकला , पूजा पद्धति और मान्यताएँ।


                मध्यप्रदेश का दूसरा और  शिव के १२ ज्योतिर्लिंगो में शामिल ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग हिंदुओ की अप्रतिम  आस्था का केंद्र हे।  ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग नर्मदा नदी के मध्य में ओमकार पर्वत पर स्थित हे।  यहाँ पर पतितपावनी माँ नर्मदा अपने पानी के बहाव से ''ॐ'' आकार बनाती हे और इस मन्दिरमे शिवलिंग का आकर भी ॐ के  जैसा हे।  शास्त्रों के मुताबिक, हिंदुओ में सभी तीर्थस्थल के दर्शन के बाद ओम्कारेश्वर के दर्शन और पूजन का विशेष महत्व हे।  यहाँ पर आनेवाले तीर्थयात्री  अलग अलग तीर्थो से लाये गए जल से ओम्कारेश्वर में  जलाभिषेक करते हे।  यहाँ पर ममलेश्वर महादेव मंदिर भी हे जिसे ज्योतिर्लिंग के समान दर्जा  दिया  हे, इसका उल्लेख द्वादश ज्योतिर्लिंग में भी  मिलता हे।  यदि वर्षा या बाढ़ के कारन कोई ओम्कारेश्वर नहीं जा सकता तो ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन से उतने ही पुण्य फल की प्राप्ति कर सकता हे।  
                ओम्कारेश्वर मंदिर का उल्लेख ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओ में मिलता हे।  स्कंदपुराण , शिवपुराण और वायुपुराण में भी इस मंदिर के माहात्म्य का वर्णन किया गया हे। इस ज्योतिर्लिंग का प्राचीन नाम परमेश्वर या अमरेश्वर महादेव हे , ऐसा प्राचीन ग्रंथो में कहा गया हे।  ओम्कारेश्वर क्षेत्र में कुल ६८ तीर्थस्थल हे , जहा ३३ करोड़ देवी-देवता का वास हे और   जिनकी यात्रा हिंदुओ के लिए अत्यंत लाभकारी मानी जाती हे।  कहा जाता हे इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही व्यक्ति के सारे पाप धूल जाते हे और कष्टों से मुक्ति मिलती हे।  

              
                प्राचीन कथा के अनुसार शिव के परम भक्त सूर्यवंशी राजा मान्धाता ने नर्मदा किनारे इसी ओमकार पर्वत पर कठिन तपस्या कर कर भगवान शिव को प्रसन्न किया था।  अतिकठिन तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने राजा को वरदान मांगने को कहा , तो  राजा ने शिवजी को यही पर निवास करने का वचन मांग लिया। तभी से इस पवित्र ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग का प्रागट्य हुआ , और इस तीर्थस्थल को ओमकार-मान्धाता के रूप में जाना जाने लगा।  

                 ओम्कारेश्वर और ममलेश्वर  ज्योतिर्लिंग की कथा के अनुसार , पूर्वकाल में देवर्षि नारद भ्रमण करते हुए जब विंध्यांचल  पर्वत पर पहुंचे तब वहा पर उनका स्वागत करते हुए अभिमानभरे अंदाज में विंध्य ने कहा,'' मेरे पास  सब कुछ हे , में सर्वगुण संपन्न हु। '' तब सब के अहंकार का नाश करने वाले  नारदमुनि ने प्रत्युत्तर में कहा, ''  तुम से  ऊँचा मेरू  पर्वत हे , जिसके शिखर ऊँचे आसमान को छुते हे और जहा पर देवता वास करते हे। '' इस बात से दुखी होकर विंध्यांचल शिव की आराधना करने लगे।  छह मास की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने विंध्य पर्वत को वरदान मांगने को कहा, विंध्य ने भगवान शिव को वही पर निवास करने को कहा। भगवान् शिव ने आग्रहवश वही पर वास किया ,  तभी वहा पर पहुंचे ऋषिमुनिओ और देवतागण के अनुरोध से वहा का ज्योतिर्लिंग दो भागो में विभक्त हो गया - प्रणव लिंग ओम्कारेश्वर और दूसरा पार्थिव लिंग ममलेश्वर के नाम से प्रसिद्द हुआ।  

                पौराणिक कथा के अनुसार शिव भक्त कुबेर ने शिव तपस्या के दौरान यहाँ पर शिवलिंग की स्थापना की थी , और तपस्या से प्रसन्न होकर बभगवान शिव ने उन्हें देवताओ का खजानची या धनपति बनाया। भगवान शिव ने कुबेरजी के स्नान के लिए अपनी जटा से कावेरी नदी को उत्पन्न किया , जो की कुबेर जी के स्थानक से होकर नर्मदा जी में मिलती हे।  ओम्कारेश्वर के परिक्रमा के साथ कावेरी नदी जहा पर नर्मदा नदी में मिलती हे उसे संगम स्थल भी कहा जाता हे।  कुबेर जी के मंदिर में धनतेरस के पूजन का विशेष महत्व हे , इस दिन यहाँ  अभिषेक पूजन और  महालक्ष्मी का महायज्ञ किया जाता हे। धनतेरस की पूर्व रात्रि यानि वाघबारस को मंदिर में ज्वार चढ़ाया जाता हे और रात को जागरण होता हे  , इस अवसर पर दूर दूर से हजारो भक्त आते हे और धनकुबेर के आशीर्वाद पाकर धन और वैभव को प्राप्त करते हे।  

                ओम्कारेश्वर मंदिर पांच मंजिलो वाला हे - पहली मंजिल पर  ओम्कारेश्वर , दुसरी मंजिल पर महाकालेश्वर , तीसरी मंजिल पर सिद्धनाथ महादेव , चौथी मंजिल पर गुप्तेश्वर महादेव और आखर में राजेश्वर महादेव का मंदिर हे।  सामान्यत: मंदिर में  गर्भगृह के  मध्य में शिवलिंग होता हे और उसके उपर शिखर होता हे , पर ओम्कारेश्वर मंदिर में ऐसा नहीं हे।  ऐसा कहा जाता हे , तीनो लोको के भ्रमण के बाद त्रिलोकनाथ शिव ओम्कारेश्वर में विश्राम - शयन करने आते हे।  यहाँ के पंडितो के अनुसार , यहाँ पर भगवान शिव माँ पार्वती के साथ रहते हे और रात में शतरंज भी खेलते हे।  दूर दूर से श्रद्धालु यहाँ की शयन आरती में शामिल होने आते हे , शयन आरती के पश्चात गर्भगृह में शतरंज की चौसार बिछायी जाती हे।  उसके बाद गर्भगृह को बंध कर दिया जाता हे , और रात को कोई परिंदा भी अंदर नहीं जाता , पर जब सुबह दरवाजा खुलता हे तो चौसार के पासे उलटे पड़े मिलते हे।  लोग ऐसा मानते हे की रात को भगवान वह पर माँ पार्वती के साथ शतरंज खेलते हे।  कई लोगो ने इस राज से पर्दा उठाने की कोशिश की पर अब तक कोई भी ये बताने में सफल नहीं हुआ की रात को पासे उलटे कैसे हो जाते हे।  

                ओम्कारेश्वर मंदिर सुबह के ५ बजे से लेकर रात के १० बजे तक दर्शन के लिए खुला रहता हे, किन्तु बिच में ३:४५ से ४:१५ के बीच मंदिर को साफ - सफाई के लिए बंध किया जाता हे।  इस मंदिर में सुबह ५:१५ बजे मंगला आरती की जाती हे और रात को ८:३० बजे शयन आरती की  जाती हे।  प्रतिदिन यहाँ पर ३ विशेष पूजा की जाती हे और आश्चर्य की बात तो यह हे की यह तीनो पूजा अलग अलग पुजारिओं द्वारा की जाती हे।  प्रात:काल की पूजा मंदिर ट्रस्ट के पुजारी करते हे , दोपहर की पूजा सिंधिया घराने के पुजारी करते हे और सायंकाल की पूजा होल्कर स्टेट की परफ से की जाती हे।  इन सबसे विशेष इस मंदिर में शिव की गुप्त आरती भी की जाती हे , जिसमे केवल पुजारी भाग लेते हे और विशेष पूजन अर्चन करते हे। इस मंदिर में विकलांग के लिए दर्शन हेतु खास सुविधा उपलब्ध है | प्रति सोमवार भगवान की पालखी यात्रा निकाली जाती हे जिसे सोमवार सवारी भी कहते हे , सावन के महीने में यह नगरयात्रा बड़े ही धूमधाम से की जाती  जिसमे भक्त अबिल-गुलाल की छोरो के  साथ नृत्य भी करते हे।  

                ओम्कारेश्वर मंदिर मध्यप्रदेश के खंडवा जिले में मोरटक्का गांव से १४ किमी की दूरी पर नर्मदा नदी के बीच टापू पर हे , जो इंदौर से ८० किमी और  उज्जैन से १३० किमी की दूरी पर हे।  यहाँ तक जाने के लिए इंदौर से आसानी से बससेवा उपलब्ध हे , मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग की और से भी ओम्कारेश्वर के लिए बसे चलायी  जाती हे।  इस स्थल पर रात्रि रुकने के लिए भी होटल्स और गेस्ट हाउस आसानी से मिल सकते हे।  वैसे तो इस स्थान पर सैंकड़ो लोग हररोज  दर्शन के लिए आते हे , और सावन के माह में  ये संख्या हजारो में हो जाती हे।  

                आशा हे आपको यह जानकारी पसंद आयी होंगी। जय श्री ओम्कारेश्वर। 

                अगले अंक में फिर मिलेंगे एक और ज्योतिर्लिंग के साथ  . . . . . . 

  
            














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