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Showing posts from July, 2020

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग - मंदिर से जुड़े तथ्य, वस्तुकला , पौराणिक कथा , पूजा पद्धति और आरती , माहात्म्य।

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                उज्जैन स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग  वहा  पर की जाने वाली भस्मारती के लिए विश्वभर में विख्यात हे।  क्षिप्रा नदी के किनारे बसा उज्जैन शहर हिंदुओ की सप्तपुरी में शामिल हे और भगवान शिव को  बहुत प्रिय हे , प्राचीन समय में इस शहर को उज्जियिनी या फिर अवन्तिका के नाम से भी जाना था।  भगवान शिव के १२ ज्योतिर्लिंगों में महाकालेश्वर को तीसरा स्थान प्राप्त हे, परंतु इस ज्योतिर्लिंग को सर्वोत्तम ज्योतिर्लिंग का दर्जा प्राप्त हे।  कहा जाता हे , '' आकाशे तारकं  लिंगं पाताले हाटकेश्वरम, भूलोके च महाकाले लिङ्गत्रय नमोस्तुते। '' - आकाश में तारक शिवलिंग , पाताल में हाटकेश्वर और भूलोक में महाकाल ही मान्य शिवलिंग हे।                      महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को सदियों पुराना माना जाता हे , और उसके प्रागट्य के बारे में भी अनेक कथाये प्रचलित हे।  एक कथा के अनुसार , प्राचीन अवंतिका नगर में राजा चन्द्रसेन का राज हुआ करता था।  राजा चन्द्रसेन बहुत बड़ा शिव भक्त था , नगर की प्रजा भी शिवपूजा में लीन रहती थी।  एक बार अवंतिका पर राजा रिपुदमन ने आक्रमण किया था  और राक्

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग - मंदिर , पैराणिक कथा , ज्योतिर्लिंग का माहात्म्य , ऐतिहासिक महत्त्व और वास्तुकला।

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                   १२ ज्योतिर्लिंगों में दूसरा ज्योतिर्लिंग यानि की श्रीशैलें मल्लिकार्जुनम अर्थात श्री शैल पर्वत पर आया हुआ मल्लिकार्जुन धाम।  यह ज्योतिर्लिंग आँध्रप्रदेश के कृष्णा जिले में कृष्णा नदी के तट पर आया हुआ हे।  इस स्थान को दक्षिण का कैलास भी माना जाता हे।  शिवपुराण , स्कंदपुराण , महाभारत जैसे अनेक धार्मिक ग्रंथो में इस स्थान का उल्लेख मिलता हे।  महाभारत के अनुसार, इस शैल पर्वत पर शिव और पार्वती की पूजा करने से अश्वमेघ यज्ञ के सामान फल मिलता हे।  इस ज्योतिर्लिंग को शिव और शक्ति का संयुक्त रूप भी कहा जाता हे - मल्लिका यानि देवी पार्वती और अर्जुन को शंकर कहते हे।  शास्त्रों के अनुसार इस ज्योतिर्लिंग में शिवपूजा करने  से व्यक्तिमात्र  के सारे कष्ट दूर हो जाते हे और वो अनंत सुख की प्राप्ति करता हे।                    मल्लिकार्जुन  ज्योतिर्लिंग के प्रागट्य के साथ कई कथाए जुडी हुयी हे।  शिवपुराण के अनुसार एक बार कार्तिकेय स्वामी और गजानन अपने विवाह को लेकर बहस करने लगे।  कार्तिकेय कहे , '' में बड़ा हु इस लिए मेरा विवाह प्रथम होगा।'' पर गजानन कहे ,'&

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग - सोमनाथ मंदिर , वास्तुकला , पौराणिक कथा , ऐतिहासिक महत्व और जानिए सोमनाथ यात्रा के बारे में सारी जानकारी

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              १२ ज्योतिर्लिंगों में से सबसे पहला ज्योतिर्लिंग  यानी की सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, गुजरात के सौराष्ट्र में प्रभासपाटण नामक स्थल पर अरब सागर के किनारे स्थित हे।  सोमनाथ मंदिर भारतवर्ष के प्राचीनतम और ऐतिहासिक मंदिरो में से एक हे , जहा दुनियाभर से शिवभक्त भगवान शिव के दर्शन के लिए आते हे।   इस ज्योतिर्लिंग के बारे में कहा गया हे की यहाँ के शिवलिंग की स्थापना स्वयं चंद्र भगवान ने की थी और इसका उल्लेख प्राचीनतम वेद ऋग्वेद में भी मिलता हे।  इस ज्योतिर्लिंग का महिमा महाभारत , श्रीमद भागवत और स्कन्द पुराण में भी बताया गया हे।                 सोमनाथ मंदिर हिन्दू धर्म के बहुत सारे उतर चढाव का साक्षी रहा हे।  इस मंदिर को कई बार मुस्लिम शासकोने लूटा  , और हर बार इस मंदिर का पुनःनिर्माण किया गया।  कहा जाता हे इस मंदिर में शिवलिंग हवा में स्थिर था , जो की वास्तुकला का बेजोड़ नमूना था।  इतिहासकारो की माने तो शिवलिंग से जुडी चुंबकीय शक्ति से वो हवा में स्थिर था। महमूद गजनी भी इस नज़ारे को देख कर चौंक गया था , जब वो इस मंदिर के खजाने को लूटने आया था।                 भारत की आजादी के

जानिए भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग - स्थान , इतिहास और माहात्म्य के बारे में।

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               सावन का महीना शुरू होते ही त्योहारों के ताते लग जाते हे।  एक ख़तम हुआ नहीं की दूसरे त्यौहार की तयारी में लग जाओ... हरियाली तीज , नागपंचमी , छठ , शीतला सातम, जन्माष्टमी, रक्षाबंधन और अनगिनत।  हर कोई अपनी परंपरा   के अनुसार त्यौहार मनाता हे , पर महीनेभर के लिए शिवमंदिरो में शिवभक्तों की भीड़ लगी रहती हे। सावन के सोमवार के और अमास के दिन तो ये भक्तो की भीड़ अपनी पराकाष्ठा को छू जाती हे।  हमारे देश में ऐसे बहुत सारे शिवमंदिर हे जो अपने पौराणिक , ऐतिहासिक या फिर चमत्कारिक महत्व के लिए जाने जाते हे, पर भगवान शिव के १२ ज्योतिर्लिंग का स्थान सर्वोच्च हे।                 शिव पुराण की कथा के अनुसार , एक बार भगवान विष्णु और भगवान ब्रम्हा के बीच बहस हुइ की दोनों में सर्वोच्च कौन ? दोनों शिवजी के पास गए , तब भगवान शिव ने एक अनंत ज्योतिस्तंभ की रचना की और उनसे कहा की इस स्तंभ के दोनों छोर कहा हे बताये।  तब भगवान विष्णु ने हार मान ली , पर भगवान ब्रम्हा ने अपने ज्ञान को उपा रखते हुए जूठा ही जवाब दे दिया और उसे साबित भी करने लगे।  तब भगवान शिव ने उन्हें श्राप दिया की पृथ्वी पर उ